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गुणों से भरपूर रसभरी, उन्नत किस्म की खेती से करें पूरे साल कमाई

गुणों से भरपूर रसभरी, उन्नत किस्म की खेती से करें पूरे साल कमाई

अगर आप कम लागत में पूरे साल कमाई करना चाहते हैं, तो रसभरी की खेती को अपना सकते हैं. रसभरी की 25 से 30 क्विंटल पैदावार व्यवसायिक खेती में प्रति एकड़ के हिसाब से मिलती है. अगर इसे समान्य तापमान में रखा जाए तो, ये कम से कम तीन से चार दिनों तक खराब नहीं होती. ड्राई और फ्रोजन फ्रूट्स के साथ साथ सॉस, जैम, प्यूरी, जूस और हर्बल टी जैसे उत्पादकों की वजह से रसभरी की डिमांड काफी ज्यादा होती है. इसलिए इसके दाम भी अच्छे खासे मिलते हैं. इसके अलावा छोटे स्तर पर रसभरी की खेती करके सिर्फ सॉस और जैम बनाकर इससे पूरे साल कमाई की जा सकती है. अगर आप परम्परागत खेती से ऊब चुके हैं, और कमाई करने का कोई नया नजरिये खोज रहे हैं, तो रसभरी इसमें आपकी अच्छी मदद कर सकती है. इसकी खेती किसी भी तरह की जमीन में की जा सकती है. लेकिन इसकी सबसे अच्छी पैदावार के लिए उपजाऊ बलुई दोमट मिट्टी क इस्तेमाल किया जाना चाहिए. हालांकि रसभरी एक तरह का खरपतवार किस्म का पौधा है, जिसे सामान्य फसलों के बीच में उगाना काफी मुश्किल भरा होता है. लेकिन इसकी खेती अगर सही ढंग से कर ली जाए तो, बाजार में इसका अच्छा दाम मिल जाता है.

रसभरी की उन्नत खेती

मौसमी फलों में रसभरी की अपनी अलग पहचान है, जिसे लोग खूब पसंद करते हैं. इसे सलाद के रूप में भी खाया जा सकता है. इसके अलावा इसमें औषधीय गुण भी होते हैं. इसमें विटामिन ए और सी का अच्छा स्रोत होता है. प्रोटीन और कैल्शियम भी इसमें भरपूर मात्रा में होता है. अगर आप भी इसकी खेती करके पूरे साल कमाई करना चाहते हैं, तो इससे पहले इसकी खेती से जुड़ी हर जानकारी आपको जान लेनी जरूरी है.

कैसे करें जमीन का चुनाव?

रसभरी की खेती के लिए उसकी फसल के लिए लगभग सभी तरह की जमीन उपयुक्त होती है. लेकिन अगर बलुई दोमट मिट्टी है, तो इसकी पैदावार अच्छी होती है. वहीं दोमट मिट्टी में इसकी पैदावार थोड़ी कम होती है. अगर आप चाहते हैं, कि रसभरी की खेती से आपको अच्छा उत्पादन मिले, तो इस बात को जरुर सुनिश्चित कर लें कि, खेत से जल निकासी की सुविधा अच्छी हो. इसकी उन्नत खेती के लिए पी एच 6.5 से 7.5 क्षमता वाली जमीन सबसे अच्छी होती है.

कैसे करें खेती की तैयारी?

रसभरी की फसल के लिए चयनित जमीन की जून के पहले हफ्ते में मिट्टी पलट हल से कम से कम दो बार जुताई की जाने चाहिए. इसके अलावा जून के आखिरी हफ्ते में तीन या चार बार कल्टीवैटर से जमीन की जुताई कर मिट्टी को भुरभुरा बना लें. जिसके बाद एक बार फिर से पटेला की मदद से जमीन को समतल कर लें.

कैसी होनी चाहिए जलवायु

सबसे पहले रसभरी के पौधा तैयार किया जाता है. जिसके लिए जून के दूसरे हफ्ते से लेकर जुलाई का पहला हफ्ता अच्छा होता है. रसभरी की खेती के लिए कम से कम 20 से 25 डिग्री सेल्सियस का तापमान होना जरूरी है. लेकिन 15 से 20 डिग्री सेल्सियस तापमान में भी इसकी अच्छी खेती की जा सकती है. इस तापमान में रसभरी का फल नारंगी की तरह दिखने लगता है और उसकी ग्रोथ अच्छी हो जाती है. तापमान के ऊपर और नीचे होने का असर इसके उत्पादन, स्वाद, भार, रंग और आकार पर भी पड़ता है.

कैसे करें पौध तैयार और कितनी हो बीज की मात्रा?

नर्सरी में रसभरी के बीजों को जून से जुलाई के महीने में बोया जाता है. 200 से 250 ग्राम बीज प्रति हेक्टेयर के हिसाब से काफी होते हैं. जब पौध अंकुरित होकर थोड़े लंबे हो जाते हैं, तो वो पौधा बन जाते हैं. जिसके बाद उन्हें क्यारियों में बो दिया जाता है. पोधे को तैयार करने के लिए जीवांशुयुक्त मिट्टी सबसे अच्छी होती है. बेज बोने से पहले मिट्टी में अच्छे कम्पोस्ट या गोबर की खाद मिला दें. अगर आप चाहते हैं कि, रसभरी का पौधा स्वस्थ्य और अच्छा हो, तो उसे प्रतिवर्ग मीटर के हिसाब से कम से कम 10 ग्राम अमोनिया फास्फेट और एक किलो सड़ी हुई
गोबर की खाद का इस्तेमाल करें. रसभरी के पौधे की नर्सरी हमेशा उठी हुई जमीन पर तैयार की जानी चाहिए. वहीं क्यारियां जमीन से 20 से 25 सेंटीमीटर ऊंची होनी जरूरी हैं. क्यारियों के आकार की बात करें तो, उनका आकार लगभग तीन मीटर लंबा और एक मीटर चौड़ा अच्छा होता है.

कैसे करें बुवाई?

रसभरी के बीजों की बुवाई ज्यादा घनी नहीं होनी चाहिए. बीजों को बोने से पहले उन्हें सड़ी गोबर की खाद में मिलाकर अच्छे से ढककर रख दें. जिसके बाद फव्वारा तकनीक से हल्की सिंचाई करें. जिन क्यारियों में रसभरी के बीजों की बुवाई की है, उसे धूप से बचाने के लिए घास फूंस के छप्पर से ढंक दें. जब बीज अंकुरित होने लगें तो, इन छप्परों को क्यारियों से हटा दें. इसके बाद जरूरत के हिसाब से इसकी सिंचाई फुव्वारे से ही करें. एक हफ्ते के अंतराल में क्यारियों में विकसित हुए पौधे पर मैंकोजेब दो ग्राम नाम की दवा पानी में घोलकर उसमें डालें. अगर पौधे में लीफ माइनर नाम का कीट लग रहा हो तो, ऐसे में डाईक्लोरोवास 2 मिली पानी में या फिर निम्बीसिडीन के घोल को मिलाकर पौधों की क्य्रैयों में अच्छी तरह से स्प्रे करें. जानकारी के लिए बता दें कि, क्यारियों में बीज बोने के 20 से 25 दिनों क वाद रोपने लायक पौधे तैयार हो जाते हैं.

कैसी हो खाद और उर्वरक?

जमीन के हिसाब से ही खाद और उर्वरकों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए. अगर रसभरी की अच्छी और स्वस्थ फसल चाहते हैं, तो उसके लिए अच्छी खाद और उर्वरकों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए. एक हेक्टेयर में कम से कम 20 से 25 टन गोबर की खाद या कम्पोस्ट खाद का इस्तेमाल करें. इसके अलावा 100 से 125 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50 से 60 किलो फास्फोरस और 50 से 60 किलो पोटाश का इस्तेमाल जरुर करें. पोधे को रोपने के तीन से चार हफ्ते पहले गोबर की खाद को खेत की मिट्टी में अच्छे से मिला लें. वहीं रोपाई के एक महीने और दो महीने के बाद की अवधि में क्यारियों में टॉपडै्रसिंग जरुर करें. ये भी पढ़े: जैविक खेती में किसानों का ज्यादा रुझान : गोबर की भी होगी बुकिंग

कैसे करें खरपतवार नियंत्रित?

रसभरी की फसलों में खरपतवार पर नियंत्रण करना सबसे ज्यादा जरूरी है. इसकी अच्छी फसल के लिए समय के हिसाब से खुरपी से तीन से चार बार खरपतवार को नराई की समूल नष्ट करते रहना चाहिए.

कैसे करें सिंचाई?

रसभरी की खेती के लिए अगत के महीने में जब सबसे ज्यादा बारिश होती है, तभी पोधों की रोपाई का काम शुरू कर देना चाहिए. क्योंकि पौधे रोपण के लिए गीली मिट्टी की जरूरत होती है. इस वजह से अगस्त का महिना रसभरी के पौधरोपण के लिए सबसे अच्छा होता है. पौधरोपण के 20 से 25 दिनों के बाद जरूरत पड़ने पर ही सिंचाई करें.

कैसे करें कीटों और रोगों से बचाव?

  • ज्यादा बारिश होने की वजह से रसभरी के पौधे पानी के सम्पर्क में रहते हैं. जिसकी वजह से उनकी जड़ गलने लगती है, जिसे जड़ गलन बीमारीरोग के नाम से जाना जाता है. इस रोग से पौधों को बचाने के लिए जल निकासी की अच्छी व्यवस्था करनी चाहिए. साथ पौधों और जड़ों के आस पास काबेन्डाजिम की एक ग्राम की मात्रा प्रति लीटर पानी में घोलकर स्प्रे करना चाहिए.
  • रसभरी की खेती में बधुआ मुजैक का सबसे ज्यादा खतरा होता है. इस रोग से बचने के लिए प्रभावित पौधों को निकालकर मिट्टी में दबा दें और द्वितीयक इन्फेक्शन को रोकने के लिए किसी कीटनाशक लेम्डासाइलोथ्रिन का स्प्रे करें.
  • अधिकतर सितम्बर के महीने की शुरुआत में लाला रंग के बहुत सारे छोटे कीट रसभरी की फसल पर नजर आते हैं. ये कीट पत्तों के निचले हिस्से में छुपे होते हैं. इससे फसल की तैयारी करने के लिए लेम्डासाइलोथ्रिन का इस्तेमाल किया जाना चाहिए.

कैसे करें फलों की तुड़ाई?

जनवरी के महीने में रसभरी के फल पकने लगते हैं. फलों का ऊपरी छिलका जब पीला हो जाए तो, यह पकने लग जाते हैं. और इनकी तुड़ाई का समय आ जाता है. रसभरी का फल अपने पोधे से नीचे की ओर लटकता है. इसीमें इसे डंठल से सावधानी पूर्वक पकड़कर तोड़ना चाहिए.

विशेष सावधानियों का रखें ख्याल

  • जब रसभरी में फल लगने लगें तो, तो उसे गिड़ार नाम के कीट से बचाने लिए पेस्टीसाइड्स जो की नीम पर आधारित दवा है, उसका इस्तेमाल करना चाहिए.
  • अगर रसभरी के साथ कोई अन्य फसल उगा रहे हैं, तो इस बात का ध्यान रखें कि, वो फसलें ऐसी हों को रसभरी की तैयार फसल से पहले ही काट ली जाएं.
  • सौंफ, फूलगोभी, पत्तागोभी, टमाटर, मिर्च और धनिया जैसी फसलों लो कतार के बीच में बो सकते हैं, क्योंकि ये सभी रसभरी की फसल तैयार होने से पहले ही तैयार हो जाती हैं.
रसभरी की खेती से जुड़ी ये कुछ ऐसी बाते हैं, जिन्हें ध्यान में रखकर अगर आप इसकी खेती करेंगे तो पूरे साल अच्छी कमाई कर पाएंगे.
पारंपरिक खेती छोड़ रोहित ने शुरू की जिरेनियम की खेती, अब कमा रहा है लाखों का मुनाफा

पारंपरिक खेती छोड़ रोहित ने शुरू की जिरेनियम की खेती, अब कमा रहा है लाखों का मुनाफा

जैसा कि हम जानते हैं, कि विगत कुछ वर्षों में कृषि क्षेत्र में निरंतर परिवर्तन देखने को मिल रहे हैं। कृषि क्षेत्र में आधुनिक उपकरणों समेत नवीन तकनीकों को भी अपनाया जा रहा है। इससे किसान भाइयों को कम वक्त में अच्छी पैदावार का फायदा मिल रहा है। साथ ही, कुछ किसान पारंपरिक खेती से हटकर नवीन तरीकों का उपयोग करके लाखों की आमदनी कर रहे हैं। वर्तमान काल में किसान पारंपरिक खेती को छोड़कर नवीन फसलों की पैदावार कर रहे हैं। किसान फिलहाल गेहूं-धान जैसी फसलों पर आश्रित न होकर नगदी फसलों पर विशेष ध्यान दे रहे हैं। इससे उनको वक्त की बचत के साथ-साथ कम लागत में ज्यादा मुनाफा प्राप्त हो जाता है। आज हम आपको एक ऐसे ही किसान के बारे में बताऐंगे, जिन्होंने पारंपरिक खेती छोड़कर परफ्यूम फार्मिंग शुरू कर लाखों की आमदनी कर कर डाली है।

किसान रोहित कवलपुर गांव के मूल निवासी हैं

दरअसल, रोहित मुले नामक किसान की यह कहानी है, जो कि महाराष्ट्र के सांगली में कवलपुर गांव के मूल निवासी हैं। तीन वर्ष पूर्व वह भी आम किसानों की तरह ज्वार, अंगूर की खेती करते थे। परंतु, बाढ़, ओलावृष्टि एवं विभिन्न वजहों से बहुत बार फसल में हानि उठानी पड़ती थी। ऐसी स्थिति में उन्होंने कुछ अलग करने के विषय में सोचा और बहुत सारे स्थानों की यात्रा के साथ-साथ विभिन्न तरीकों की खेती के विषय में जानकारी इकट्ठी की। इस दौरान उनका ध्यान जिरेनियम की खेती पर गया। उन्हें जानकारी मिली कि जिरेनियम, लैवेंडर एवं लेमन ग्रास की भांति ही परफ्यूम प्लांट है। इन समस्त पौधों की पत्तियों से निकलने वाले तेल का उपयोग इशेंसियल ऑयल्स एवं परफ्यूम आदि में होता है। साथ ही, इस खेती से उन्हें ज्यादा मुनाफा मिल सकता है। फिर उन्होंने जिरेनियम की खेती करने का मन बना लिया।

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किसान रोहित ने जिरेनियम का उत्पादन करना शुरू किया

रोहित ने पांच एकड़ की भूमि पर जिरेनियम की खेती चालू कर दी है। इस दौरान उन्होंने कहा है, कि जिरेनियम की खेती बीज से नहीं बल्कि कटिंग के माध्यम से की जाती है। जिरेनियम के शूट्स को नर्सरी में नवीन पौधे तैयार करने के लिए उपयोग करते हैं।

जिरेनियम की खेती के लिए उपयुक्त तापमान क्या है

जिरेनियम उत्पादक किसान रोहित का कहना है, कि जिरेनियम की खेती के लिए सामान्य तापमान 30-35 डिग्री के मध्य होना चाहिए। ऐसे तापमान में आसानी से जिरेनियम की खेती की जा सकती है। एक एकड़ में जिरेनियम के 12000 पौधे रोपे जाते हैं। इसके अतिरिक्त, जिरेनियम की सिंचाई के लिए ड्रिप इरीगेशन (drip irrigation) प्रणाली होनी चाहिए।

जिरेनियम की पहली फसल कितने दिनों में पककर तैयार हो जाती है

किसान रोहित के कहने के अनुसार, जिरेनियम की खेती करने पर आपको प्रथम फसल साढ़े चार माह उपरांत ही प्राप्त हो जाती है। इसकी खेती को करने में पहली बार पौधों सहित इरीगेशन सिस्टम, खरपतवार व लेबर की लागत 1 लाख 20 हजार हो सकती है। वर्तमान में एक किलो जिरेनियम तेल की कीमत तकरीबन साढ़े आठ हजार रुपये है। एक एकड़ से एक बार में 14 से 15 किलो तेल प्राप्त हो जाता है। बतादें, कि इससे पहली लागत वसूल की जा सकती है।

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जिरेनियम के पौधे की कितनी समयावधि होती है

किसान रोहित का कहना है, कि जिरेनियम खेती की पहली कटिंग के पश्चात प्रत्येक साढ़े तीन माह में इसकी फसल हांसिल की जा सकती है। इसके पौधे तीन वर्ष तक रहते हैं। इस प्रकार से हर तीन महीने में वह लाखों की आमदनी कर लेते हैं। उनका कहना है, कि खेती से 150 किलो जिरेनियम का तेल अर्जित होता है, जिसकी आमदनी 12 लाख रुपये होती है।